रुग्ण व्यक्ति की निस्वार्थ भाव से सेवा करके उसे रोगमुक्त करना ही भगवान धन्वन्तरि की सच्चे अर्थ में वंदना है।
3.
, यदि शरीर को स्वस्थ एवं रोगमुक्त करना हो या मन को पवित्र या आत्मा को निर्मल करना हो, तो वह प्राणायाम से सम्भव है।
4.
क्यूंकि शरीर को रोगमुक्त करना भी मात्र इसलिए जरुरी नहीं है की आप सुखों का उपभोग करे बल्कि उस अविनाशी आत्मा को आप एक तेजस्वी देह प्रदान कर सके जिससे की वो उस परम रूप को प्राप्त कर सके.
5.
फिर स्वयं ही उत्तर देते हुए कहने लगे की सदगुरुदेव ने इस रहस्य को बहुत ही सूक्ष्मता के साथ स्पष्ट करते हुए बताया था की “ कीमिया का अर्थ निम्न धातुओं को उच्च या मूल्यवान धातुओं में परिवर्तन मात्र नहीं है ना ही शरीर को निर्जरा या रोगमुक्त करना कीमिया कहलाता है....... ये परिभाषाएं ही गलत हैं.